शनि देव को लोग भयभीत क्यों मानते हैं? इसके कई कारण हैं। प्राचीन हिन्दू पौराणिक कथाओं और ज्योतिष शास्त्र में शनि देव को गहरे दुःख और पीड़ा का प्रतीक माना जाता है। शनि को न्याय के देवता भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है कि वह कर्मों की न्यायपूर्ण फल देने वाला है। उनका प्रभाव जीवन के विभिन्न पहलुओं पर शास्त्रों में विस्तार से वर्णित किया गया है। शनि देव का रंग काला होता है, जो उनकी पहचान है। काला रंग उनके गहरे और अदृश्य स्वभाव को प्रतिष्ठित करता है। इसलिए, लोग काले रंग को शनि देव के संकेत के रूप में मानते हैं।
शनि देव की ग्रह शास्त्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका है। शनि के ग्रहण की स्थिति और दशा व्यक्ति के जीवन पर प्रभाव डालती हैं। उनके प्रभाव के अनुसार, एक उन्हें बड़ी कठिनाइयों, संकटों और परेशानियों का कारण माना जाता है। यह कहा जाता है कि शनि देव की दया और कृपा पाने के लिए मनुष्य को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इसलिए उन्हें भय और आपत्ति का प्रतीक माना जाता है।
ज्योतिष शास्त्र में शनि देव का महत्वपूर्ण स्थान है। शनि ग्रह एक ऐसा ग्रह है जिसका प्रभाव जीवन में सामान्यतः दुखों, बाधाओं और कठिनाइयों को बढ़ा देता है। इसलिए, जब कोई व्यक्ति शनि के प्रभाव में होता है, तो उसे विभिन्न परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
शनि देव का प्रभाव व्यक्ति के कर्मों पर भी होता है। शास्त्रों में कहा जाता है कि जो लोग अच्छे कर्म करते हैं, उन्हें शनि देव का प्रभाव शांतिपूर्ण और अनुकूल होता है। वे उनकी दया और कृपा को प्राप्त करते हैं। वहीं, जो लोग बुरे कर्म करते हैं, उनके लिए शनि देव का प्रभाव कठोर और परेशान करने वाला होता है। इसलिए, शनि देव अच्छे कर्मों को प्रोत्साहित करने और बुरे कर्मों को संशोधित करने का संकेत देते हैं।
यद्यपि शनि देव का भय और पीड़ा का संकेत दिया जाता है, लेकिन उनकी पूजा और उपासना भी विशेष महत्वपूर्ण है। शनि देव की उपासना और उनके कृपा को प्राप्त करने से मान्यता है कि व्यक्ति के जीवन में दुःखों का समाधान होता है और उन्हें समृद्धि और सुख मिलता है।
शनि पूजा करने से कई फायदे हो सकते हैं। यह कुछ मुख्य फायदे हैं:
- शनि पूजा करने से शनि देवता की कृपा मिलती है और शनि के दोषों का प्रभाव कम होता है।
- यह पूजा जीवन में खुशहाली, संपत्ति और सफलता लाने में मदद कर सकती है।
- शनि पूजा से भय, चिंता और तनाव कम होते हैं और मानसिक शांति मिलती है।
- यह पूजा न्याय, धार्मिकता और ईमानदारी को बढ़ावा देती है।
- शनि पूजा करने से आर्थिक स्थिति मजबूत हो सकती है और व्यापार में वृद्धि हो सकती है।
- यह पूजा शनि की क्रोध से बचाती है और नकारात्मकता को दूर करती है।
- शनि पूजा से स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है और रोगों से बचाव हो सकता है।
यदि आप शनि पूजा करना चाहते हैं, तो प्रभू श्रीराम इंडियाज़ बेस्ट अगरबत्ती एवं धूप आपके लिए लाया है शनि देव पूजा किट जिसकी मदद से नियमनुसार भगवान शनि देव को अति प्रसन्न कर सकते हैं।
विधि (Shani Vrat Vidhi)
याद रखें, शनि पूजा को समर्पित होने के लिए समय, स्थान और नियमों का पालन करना महत्वपूर्ण होता है। यह पूजा और व्रत शनिदेव को प्रसन्न करने हेतु होता है.
- काला तिल, तेल, काला वस्त्र, काली उड़द शनि देव को अत्यंत प्रिय है. इनसे ही पूजा होती है. शनि देव का स्त्रोत पाठ करें.
- शनिवार का व्रत यूं तो आप वर्ष के किसी भी शनिवार के दिन शुरू कर सकते हैं परंतु श्रावण मास में शनिवार का व्रत प्रारम्भ करना अति मंगलकारी है ।
- इस व्रत का पालन करने वाले को शनिवार के दिन प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके शनिदेव की प्रतिमा की विधि सहित पूजन करनी चाहिए।
- शनि भक्तों को इस दिन शनि मंदिर में जाकर शनि देव को नीले लाजवन्ती का फूल, तिल, तेल, गुड़ अर्पण करना चाहिए। शनि देव के नाम से दीपोत्सर्ग करना चाहिए।
- शनि मंत्रों का जाप करें: शनि देवता के मंत्रों का जाप करना शनि के दोषों को शांत करने में मदद कर सकता है। “ॐ शं शनैश्चराय नमः” और “शनैश्चराय नमः” जैसे मंत्रों का नियमित जाप करना शुभ माना जाता है।
- तिल के तेल का दान करें: शनिवार को तिल के तेल का दान करना शनि देवता को प्रसन्न करने का एक प्रभावी तरीका है। आप तिल के तेल के एक छोटे बोतल को मंदिर में या शनि देवता के सामने रख सकते हैं और इसे दान कर सकते हैं।
- शनि देवता के व्रत रखें: आप शनि देवता के व्रत रख सकते हैं, जिसमें आपको शनिवार को नौ व्रत रखने होंगे। इस व्रत के दौरान आपको शनि देवता की पूजा करनी होगी, नियमित जाप करना होगा, और सत्विक आहार लेना होगा।
शनिवार के दिन शनिदेव की पूजा के पश्चात उनसे अपने अपराधों एवं जाने अनजाने जो भी आपसे पाप कर्म हुआ हो उसके लिए क्षमा याचना करनी चाहिए। शनि महाराज की पूजा के पश्चात राहु और केतु की पूजा भी करनी चाहिए। इस दिन शनि भक्तों को पीपल में जल देना चाहिए और पीपल में सूत्र बांधकर सात बार परिक्रमा करनी चाहिए। शनिवार के दिन भक्तों को शनि महाराज के नाम से व्रत रखना चाहिए।
शनि व्रत कथा (Shani Vrat katha)
एक समय सभी नवग्रहओं : सूर्य, चंद्र, मंगल, बुद्ध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु में विवाद छिड़ गया, कि इनमें सबसे बड़ा कौन है? सभीआपसं ऎंल ड़ने लगे, और कोई निर्णय ना होने पर देवराज इंद्र के पास निर्णय कराने पहुंचे. इंद्र इससे घबरा गये, और इस निर्णय को देने में अपनी असमर्थता जतायी. परन्तु उन्होंने कहा, कि इस समय पृथ्वी पर राजा विक्रमादित्य हैं, जो कि अति न्यायप्रिय हैं. वे ही इसका निर्णय कर सकते हैं. सभी ग्रह एक साथ राजा विक्रमादित्य के पास पहुंचे, और अपना विवाद बताया। साथ ही निर्णय के लिये कहा। राजा इस समस्या से अति चिंतित हो उठे, क्योंकि वे जानते थे, कि जिस किसी को भी छोटा बताया, वही कुपित हो उठेगा. तब राजा को एक उपाय सूझा. उन्होंने सुवर्ण, रजत, कांस्य, पीतल, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक और लौह से नौ सिंहासन बनवाये, और उन्हें इसी क्रम से रख दिय. फ़िर उन सबसे निवेदन किया, कि आप सभी अपने अपने सिंहासन पर स्थान ग्रहण करें. जो अंतिम सिंहासन पर बठेगा, वही सबसे छोटा होगा. इस अनुसार लौह सिंहासन सबसे बाद में होने के कारण, शनिदेव सबसे बाद में बैठे. तो वही सबसे छोटे कहलाये. उन्होंने सोच, कि राजा ने यह जान बूझ कर किया है. उन्होंने कुपित हो कर राजा से कहा “राजा! तू मुझे नहीं जानता. सूर्य एक राशि में एक महीना, चंद्रमा सवा दो महीना दो दिन, मंगल डेड़ महीना, बृहस्पति तेरह महीने, व बुद्ध और शुक्र एक एक महीने विचरण करते हैं. परन्तु मैं ढाई से साढ़े-सात साल तक रहता हुं. बड़े बड़ों का मैंने विनाश किया है. श्री राम की साढ़े साती आने पर उन्हें वनवास हो गया, रावण की आने पर उसकी लंका को बंदरों की सेना से परास्त होना पढ़ा.अब तुम सावधान रहना. ” ऐसा कहकर कुपित होते हुए शनिदेव वहां से चले. अन्य देवता खुशी खुशी चले गये. कुछ समय बाद राजा की साढ़े साती आयी. तब शनि देव घोड़ों के सौदागर बनकर वहां आये. उनके साथ कई बढ़िया घड़े थे. राजा ने यह समाचार सुन अपने अश्वपाल को अच्छे घोड़े खरीदने की अज्ञा दी. उसने कई अच्छे घोड़े खरीदे व एक सर्वोत्तम घोड़े को राजा को सवारी हेतु दिया. राजा ज्यों ही उसपर बैठा, वह घोड़ा सरपट वन की ओर भागा. भषण वन में पहुंच वह अंतर्धान हो गया, और राजा भूखा प्यासा भटकता रहा. तब एक ग्वाले ने उसे पानी पिलाया. राजा ने प्रसन्न हो कर उसे अपनी अंगूठी दी. वह अंगूठी देकर राजा नगर को चल दिया, और वहां अपना नाम उज्जैन निवासी वीका बताया. वहां एक सेठ की दूकान उसने जल इत्यादि पिया. और कुछ विश्राम भी किया. भाग्यवश उस दिन सेठ की बड़ी बिक्री हुई. सेठ उसे खाना इत्यादि कराने खुश होकर अपने साथ घर ले गया. वहां उसने एक खूंटी पर देखा, कि एक हार टंगा है, जिसे खूंटी निगल रही है. थोड्क्षी देर में पूरा हार गायब था। तब सेठ ने आने पर देखा कि हार गायब जहै। उसने समझा कि वीका ने ही उसे चुराया है। उसने वीका को कोतवाल के पास पकड्क्षवा दिया। फिर राजा ने भी उसे चोर समझ कर हाथ पैर कटवा दिये। वह चैरंगिया बन गया।और नगर के बहर फिंकवा दिया गया। वहां से एक तेली निकल रहा था, जिसे दया आयी, और उसने एवीका को अपनी गाडी़ में बिठा लिया। वह अपनी जीभ से बैलों को हांकने लगा। उस काल राजा की शनि दशा समाप्त हो गयी। वर्षा काल आने पर वह मल्हार गाने लगा। तब वह जिस नगर में था, वहां की राजकुमारी मनभावनी को वह इतना भाया, कि उसने मन ही मन प्रण कर लिया, कि वह उस राग गाने वाले से ही विवाह करेगी। उसने दासी को ढूंढने भेजा। दासी ने बताया कि वह एक चौरंगिया है। परन्तु राजकुमारी ना मानी। अगले ही दिन से उठते ही वह अनशन पर बैठ गयी, कि बिवाह करेगी तोइ उसी से। उसे बहुतेरा समझाने पर भी जब वह ना मानी, तो राजा ने उस तेली को बुला भेजा, और विवाह की तैयारी करने को कहा।फिर उसका विवाह राजकुमारी से हो गया। तब एक दिन सोते हुए स्वप्न में शनिदेव ने रानजा से कहा: राजन्, देखा तुमने मुझे छोटा बता कर कितना दुःख झेला है। तब राजा नेउससे क्षमा मांगी, और प्रार्थना की , कि हे शनिदेव जैसा दुःख मुझे दिया है, किसी और को ना दें। शनिदेव मान गये, और कहा: जो मेरी कथा और व्रत कहेगा, उसे मेरी दशा में कोई दुःख ना होगा। जो नित्य मेरा ध्यान करेगा, और चींटियों को आटा डालेगा, उसके सारे मनोरथ पूर्ण होंगे। साथ ही राजा को हाथ पैर भी वापस दिये। प्रातः आंख खुलने पर राजकुमारी ने देखा, तो वह आश्चर्यचकित रह गयी। वीका ने उसे बताया, कि वह उज्जैन का राजा विक्रमादित्य है। सभी अत्यंत प्रसन्न हुए। सेतठ ने जब सुना, तो वह पैरों पर गिर्कर क्षमा मांगने लगा। राजा ने कहा, कि वह तो शनिदेव का कोप था। इसमें किसी का कोई दोष नहीं। सेठ ने फिर भी निवेदन किया, कि मुझे शांति तब ही मिलेगी जब आप मेरे घर चलकर भोजन करेंगे। सेठ ने अपने घर नाना प्रकार के व्यंजनों ने राजा का सत्कार किया। साथ ही सबने देखा, कि जो खूंटी हार निगल गयी थी, वही अब उसे उगल रही थी। सेठ ने अनेक मोहरें देकर राजा का धन्यवाद किया, और अपनी कन्या श्रीकंवरी से पाणिग्रहण का निवदन किया। राजा ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। कुछ समय पश्चात राजा अपनी दोनों रानियों मनभावनी और श्रीकंवरी को साभी दहेज सहित लेकर उज्जैन नगरी को चले। वहां पुरवासियों ने सीमा पर ही उनका स्वागत किया। सारे नगर में दीपमाला हुई, व सबने खुशी मनायी। राजा ने घोषणा की , कि मैंने शनि देव को सबसे छोटा बताया थ, जबकि असल में वही सर्वोपरि हैं। तबसे सारे राज्य में शनिदेव की पूजा और कथा नियमित होने लगी। सारी प्रजा ने बहुत समय खुशी और आनंद के साथ बीताया। जो कोई शनि देव की इस कथा को सुनता या पढ़ता है, उसके सारे दुःख दूर हो जाते हैं। व्रत के दिन इस कथा को अवश्य पढ़ना चाहिये।
शनिदेव को पसंद है आक का फूल इसे मदार का फूल भी कहा जाता है. आक भी नीले रंग का ही होता है. आक के अलावा आप चाहें तो शनिदेव को नीले रंग के अपराजिता के फूल (Aparajita flower) भी अर्पित कर सकते हैं. शनिवार को शनिदेव के चरणों में नीले रंग के 5 फूल चढ़ाने से शनिदेव जल्दी प्रसन्न होते हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं.