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Ravivar Vrat : रविवार व्रत कैसे करें, जानिए पूजन विधि तथा कथा

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हिन्दू धर्म में हर दिन का महत्व अलग होता है। हिन्दू धर्म में हर दिन, किसी न किसी भगवान को समर्पित है। मान्यता है कि उस दिन उसी भगवान की पूजा करने से वो जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। सूर्यदेव हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण देवता हैं। हिंदी साहित्य और पुराणों में सूर्यदेव को देवताओं के राजा, जगत के ज्योति, सृष्टि का आदि कारण, प्रकाश का स्रोत और समस्त जीवन का पालक बताया गया है। सूर्य के संबंध में कई पुराणिक कथाएं और महत्वपूर्ण मंत्र हैं जो हिंदू धर्म की श्रद्धा एवं परंपराओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

सूर्य को प्रकाश, ऊष्मा और जीवन का प्रदाता माना जाता है। सूर्य द्वारा प्रकाशित होने वाली ऊष्मा और उष्णता के कारण ही सृष्टि में जीवन की उत्पत्ति होती है। हिंदू परंपरा में, सूर्य देव की पूजा और उनकी उपासना के अंतर्गत सूर्य नमस्कार विधि का आदान-प्रदान किया जाता है। सूर्य देव की उपासना से उम्मीद होती है कि मनुष्य को आत्मिक और शारीरिक उन्नति मिले, जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता प्राप्त हो और बुराइयों से मुक्ति मिले।

इस प्रकार, सूर्यदेव हिंदू संस्कृति में प्रमुसंबंधित एवं पूजनीय देवता हैं, जिन्हें सम्मान एवं प्रणाम करने से शुभता और उत्पन्नि होती है। सूर्यदेव की प्रार्थना एवं उपासना से मन, शरीर और आत्मा की उन्नति होती है और जीवन में सफलता प्राप्त होती है।

रविवार का दिन सूर्यदेव को समर्पित है। इस दिन लोग सूर्यदेव की पूजा करते हैं और उन्हें अर्घ्य देते हैं। हिन्दू धर्म में रविवार को सर्वश्रेष्ठ वार माना गया है। मान्यता है कि अगर रविवार के दिन व्रत किया जाए और सच्चे मन से अराधना की जाए तो व्यक्ति की मनोकामना पूरी होती है। तो आइए जानते हैं कि कितने रविवार व्रत करना चाहिए और क्यों करना चाहिए।

  • सूर्यदेव के व्रत के लाभ

शास्त्रों के अनुसार लगातार 1 वर्ष तक हर रविवार ये व्रत करने से हर तरह की शारीरिक पीड़ा से मुक्ति मिलती है। 30 या 12 रविवार तक इस व्रत को करने के भी विशेष लाभ है। शास्त्रों में लिखा है कि सूर्य का व्रत करने से काया निरोगी तो होती ही है, साथ ही अशुभ फल भी शुभ फल में बदल जाते है। अगर इस दिन व्रत कथा सुनी जाए तो इससे मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। साथ ही मान-सम्मान, धन-यश तथा उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति भी होती है। यही नहीं अगर किसी जातक की कुंडली में सूर्य की स्थिति ठीक न हो तो उसे यह व्रत अवश्य करना चाहिए।

  • व्रत करने की विधि

इस व्रत को करने से पहले ये संकल्प लेना जरूरी है कि कितने रविवार ये व्रत किया जाएगा। इसके बाद आने वाले रविवार से इसे शुरू कर सकते है। रविवार सुबह लाल रंग के कपड़े पहनकर सूर्य मंत्र का जाप करना चाहिए। इसके बाद सूर्य देव को जल, रक्त चंदन, अक्षत, लाल पुष्प और दुर्वा से अर्घ्य देकर पूजन करे। भोजन सूर्यास्त के बाद ही करें और इसमें गेहूं की रोटी, दलिया, दूध, दही और घी का उपयोग अवश्य करें। व्रत रखकर अच्छा भोजन बनाकर खाना चाहिए, जिससे आपके शरीर को भरपूर ऊर्जा मिलती है। भोजन में आप इस दिन नमक का प्रयोग ऊपर से न करें और सूर्यास्त के बाद नमक भूलकर भी न खाएं। इस दिन चावल में दूध और गुड़ मिलाकर खाने से सूर्य के बुरे प्रभाव आप पर नहीं पड़ते।

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  • व्रत की कथा

प्राचीन काल की बात है। एक बुढ़िया थी जो नियमित तौर पर रविवार के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर नित्यकर्मों से निवृत्त होकर अपने आंगन को गोबर से लीपती थी जिससे वो स्वच्छ हो सके। इसके बाद वो सूर्य देव की पूजा-अर्चना करती थी। साथ ही रविवार की व्रत कथा भी सुनती थी। इस दिन वो एक समय भोजन करती थी और उससे पहले सूर्य देव को भोग भी लगाती थी। सूर्य देव उस बुढ़िया से बेहद प्रसन्न थे। यही कारण था कि उसे किसी भी तरह का कष्ट नहीं था और वो धन-धान्य से परिपूर्ण थी।

जब उसकी पड़ोसन ने देखा की वो बहुत सुखी है तो वो उससे जलने लगी। बढ़िया के घर में गाय नहीं थी इसलिए वो अपनी पड़ोसन के आंगन गोबर लाती थी। क्योंकि उसके यहां गाय बंधी रहती थी। पड़ोसन ने बुढ़िया को परेशान करने के लिए कुछ सोचकर गाय को घर के अंदर बांध दिया। अगले रविवार बुढ़िया को आंगन लीपने के लिए बुढ़िया को गोबर नहीं मिला। इसी के चलते उसने सूर्य देवता को भोग भी नहीं लगाया। साथ ही खुद भी भोजन नहीं किया और पूरे दिन भूखी-प्यासी रही और फिर सो गई।

अगले दिन जब वो सोकर उठी को उसने देखा की उसके आंगन में एक सुंदर गाय और एक बछड़ा बंधा था। बुढ़िया गाय को देखकर हैरान रह गई। उसने गाय को चारा खिलाया। वहीं, उसकी पड़ोसन बुढ़िया के आंगन में बंधी सुंदर गाय और बछड़े को देखकर और ज्यादा जलने की। तो वह उससे और अधिक जलने लगी। पड़ोसन ने उसकी गायब के पास सोने का गोबर पड़ा देखा तो उसने गोबर को वहां से उठाकर अपनी गाय के गोबर के पास रख दिया।

सोने के गोबर से पड़ोसन कुछ ही दिन में धनवान हो गई। ये कई दिन तक चलता रहा। कई दिनों तक बुढ़िया को सोने के गोबर के बारे में कुछ पता नहीं था। ऐसे में बुढ़िया पहले की ही तरह सूर्यदेव का व्रत करती रही। साथ ही कथा भी सुनती रही। इसके बाद जिस दिन सूर्यदेव को पड़ोसन की चालाकी का पता चला। तब उन्होंने तेज आंधी चला दी। तेज आंधी को देखकर बुढ़िया ने अपनी गाय को अंदर बांध दिया। अगले दिन जब बुढ़िया उठी तो उसने सोने का गोबर देखा। तब उसे बेहद आश्चर्य हुआ।

तब से लेकर आगे तक उसने गाय को घर के अंदर ही बांधा। कुछ दिन में ही बुढ़िया बहुत धनी हो गई। बुढ़िया की सुखी और धनी स्थिति देख पड़ोसन और जलने लगी। पड़ोसने उसने अपने पति को समझा-बुझाकर उसे नगर के राजा के पास भेजा। जब राजा ने उस सुंदर गाय को देखा तो वो बहुत खुश हुआ। सोने के गोबर को देखकर तो उसकी खुशी का ठिकाना न रहउसे नगर के राजा के पास भेज दिया। सुंदर गाय को देखकर राजा बहुत खुश हुआ। सुबह जब राजा ने सोने का गोबर देखा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। वहीं, बुढ़िया भूखी-प्यासी रहकर सूर्य भगवान से प्रार्थना कर रही थी। सूर्यदेव को उस पर करुणा आई। उसी रात सूर्यदेव राजा के सपने में आए और उससे कहा कि हे राजन, बुढ़िया की गाय व बछड़ा तुरंत वापस कर दो। अगर ऐसा नहीं किया तो तुम पर परेशानियों का पहाड़ टूट पड़ेगा। सूर्यदेव के सपने ने राजा को बुरी तरह डरा दिया। इसके बाद राजा ने बुढ़िया को गाय और बछड़ा लौटा दिया। राजा ने बुढ़िया को ढेर सारा धन दिया और क्षमा मांगी। वहीं, राजा ने पड़ोसन और उसके पति को सजा भी दी। इसके बाद राजा ने पूरे राज्य में घोषणा कराई की रविवार को हर कोई व्रत किया करे। सूर्यदेव का व्रत करने से व्यक्ति धन-धान्य से परिपूर्ण हो जाता है। साथ ही घर में खुशहाली भी आती है।

  • रविवार को ये कार्य ना करें

रविवार को तेल और नमक का सेवन ना करें। मांस या मदिरा से पूरी तरह दूरी बनाए रखें। रविवार को बाल न कटाएं और तेल की मालिश भी ना करें। तांबे की धातु से बनी वस्तु ना खरीदें और ना ही बेचे। नीला, काला और ग्रे रंग के कपड़े ना पहने, और यदि जरूरी ना हो तो जुते पहनने से भी बचे। ऐसा कोई काम ना करें जिसमें दूध किसी भी प्रकार से जलाया जाए।

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