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धार्मिक ग्रंथों की मान्यता के अनुसार श्रीराम, विष्णु के सातवें अवतार और भक्तों के अत्यंत प्रिय एवं सबसे अधिक पूजे जाने वाले दिव्य स्वरुप हैं। पर आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अलग हटकर अगर एक वास्तविक नज़रिये से देखा जाए तो श्रीराम हर इंसान के भीतर छुपा एक अलौकिक एहसास है, जिसे जीवन के हर क्षण महसूस किया जा सकता है। शायद यही श्रीराम के जीवन की अनमोल धरोहर है जो वह मनुष्य के रूप में जन्म लेकर हम सब के लिए छोड़ गए हैं। देखा जाए तो भगवान श्रीराम का जन्म, उनका बचपन, उनकी शिक्षा, अपने माता-पिता के प्रति उनका आदर भाव, अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के प्रति उनका प्रेम, उनका हर सुख और दुःख, उनके जीवन की हर कठिनाई, हमारे जीवन का एक प्रतिबिम्ब ही तो हैं। पर उनके और हमारे जीवन में इतनी समानता होने के बावजूद आखिर क्या कारण है कि वे ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ कहलाते हैं? उनकी निष्ठा, उनकी महानता, उनका समर्पण, उनका प्रेम, उनकी विनम्रता एवं उनका बलिदान उन्हें ‘मर्यादा पुरुषोत्तम राम’ की उपाधि से सुशोभित करते हैं। भगवान राम अपनी करुणा के लिए जाने जाते थे और एक राजा होने के बावजूद उन्होनें इन सब गुणों का पालन कर अपना कर्त्तव्य पूरी निष्ठा से निभाया। उन्होंने अपने जीवन में जो भी पाया, चाहे सुख या फिर दुःख, उसे ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार किया। वह निष्ठावान एवं दयालु थे जो सभी का भला चाहते थे।
स्वामी विवेकानंद ने भगवान राम को “सत्य, नैतिकता, आदर्श पुत्र, आदर्श पति और सबसे ऊपर, आदर्श राजा” के रूप में परिभाषित किया था। उन्होंने हमेशा नैतिक और सामाजिक दायरे का पालन किया और अपने कार्यों से सम्पूर्ण मानवजाति को मार्ग दिखाया। वह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक हैं। प्रभु श्रीराम की जीवन गाथा हमें सिखाती है कि मनुष्य को हमेशा अपनी नैतिक प्रतिबद्धताओं और अपनी सीमाओं का सख्ती से पालन करना चाहिए ताकि सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखा जा सके। । वह सही मायनों में हर पीढ़ी के लिए एक उपयुक्त आदर्श हैं। उनका जीवन काँटों से भरा था लेकिन वह जानते थे कि वह जो कर रहे हैं वह जनता के कल्याण के लिए है। भगवान राम ने ऐसे फैसले लिए जिनसे उनका जीवन कठिन हो गया लेकिन अंततः उन्होंने राज्य के भविष्य को आकार देने में मदद की।
प्रभु श्रीराम के जीवन की एक बहुत ही लोकप्रिय घटना है जो अपने भक्तजनों के प्रति उनके प्रेम को दर्शाती है। अपने वनवास के दौरान वह एक बार शबरी के आश्रम गए। शबरी एक वृद्ध महिला थी और भगवान श्रीराम की सच्ची भक्त थी। भगवान राम को अपने आश्रम में देखकर वह बहुत खुश हुई। उसने श्रीराम के लिए बेर इकठ्ठे किए मगर उन्हें खिलाने से पहले वह ये सुनिश्चित करना चाहती थी कि जो बेर वो राम को खिला रही है वह मीठे हों। इसलिए वो हर बेर को चखने के बाद ही राम को खाने के लिए दे रही थी। इसपर लक्ष्मण ने विरोध किया मगर शबरी के प्रेम और उसकी भक्ति को देखकर श्रीराम ने उसके झूठे बेर खाने से कोई संकोच नहीं किया। दो अक्षरों से बना यह सरल और साधारण शब्द, ‘राम’ इतना पावन है कि इसके उच्चारण मात्र से ही अनंत शांति प्राप्त होती है वहीँ दूसरी ओर यह शब्द इतना शुभ है कि इसे आज भी समृद्धि और सफलता का प्रतीक माना जाता है। उदाहरण के तौर पर भारत की सर्वश्रेष्ठ अगरबत्ती और धुप के निर्माता, प्रभु श्रीराम ने बहुत ही कम समय में व्यापार के क्षेत्र में बेजोड़ सफलता हासिल की है। प्रभु श्रीराम कंपनी द्वारा बनाई गई सुगन्धित अगरबत्तियां एवं धुप अपनी मनमोहक सुगंध और प्राकृतिक विशेषताओं के लिए जानी जाती हैं। प्रभु श्रीराम कम्पनी के संस्थापक, प्रशांत कुमार का मानना है कि उनकी कम्पनी की सफलता का श्रेय केवल उनकी मेहनत और प्रभु श्रीराम के नाम को जाता है। “यह भगवान श्रीराम का आशीर्वाद और उनकी असीम कृपा है जिसके कारण हमारे उत्पाद हर उम्र के उपभोक्ताओं को इतने पसंद आए हैं। विशेषकर हमारी श्रीपद रामायण सीरीज़, जो की श्रीराम के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं से प्रेरित है, दस विभिन्न प्रकार की सुगन्धित अगरबत्तियों का एक अनूठा संकलन है और हमारे पसंदीदा उत्पादों की श्रेणी में सबसे ऊपर है।” प्रशांत कुमार ने कहा।